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“डिग्री नहीं, सही दिशा चाहिए” – रोहित उगले की कहानी, मुन्ना भैया और ‘छिछोरे’ के डायलॉग्स में मिलती है जिसकी झलक

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“बहुत तकलीफ होती है जब आप योग्य हो और लोग आपकी योग्यता को न पहचाने…
ये डायलॉग जब मुन्ना भैया बोलते हैं मिर्जापुर में, तो हर ऐसा इंसान उससे जुड़ जाता है जो चुपचाप अपनी लड़ाई खुद लड़ रहा होता है। कुछ ऐसा ही महसूस किया रोहित उगले ने — जब उन्होंने 16 साल की उम्र में फ्रीलांसिंग से शुरुआत की, और आज 100 से ज्यादा लोगों को रोजगार देने वाले एक सफल व्यवसायी बन चुके हैं।

डर था, पर रुकना मंजूर नहीं था

रोहित बताते हैं,

“पापा और मम्मी के डर से चुपचाप फ्रीलांस काम करना शुरू किया।”
“मुझे लगने लगा था कि जल्दी कुछ करना पड़ेगा, नहीं तो घरवाले फिर नंबर और डिग्री के पीछे दौड़ा देंगे।”

10वीं में 78% आए थे। माता-पिता को उम्मीद थी 90% की। नतीजा — चुप्पी, सवाल भरी नज़रें और हर दिन का टेंशन। लेकिन रोहित ने उस डर को हथियार बना लिया।

“डिग्री नौकरी वालों को चाहिए होती है, बिजनेस करने वालों को नहीं”

ये वो लाइन है जो शायद हर सिस्टम से परेशान युवा दिल से कहना चाहता है।
रोहित ने न कोचिंग की, न कोई मैनेजमेंट इंस्टिट्यूट से MBA किया।
यूट्यूब, गूगल और अपनी जिज्ञासा से उन्होंने सीखा — डिजिटल मार्केटिंग, कोडिंग, फिनटेक, UPI इंटीग्रेशन… और खड़ी कर दी SATMAT Technologies Pvt. Ltd.

फेलियर से कैसे डील करें, कोई नहीं बताता

2019 में आई फिल्म छिछोरे का वो डायलॉग आज भी ताज़ा है –
“सक्सेस के बाद का प्लान सबके पास है, लेकिन फेलियर से कैसे डील करना है, इसकी कोई बात नहीं करता।”

रोहित की कहानी उसी बात को साबित करती है।
जब सबने रिजल्ट के बाद उम्मीदें कम कर दीं, तब उन्होंने खुद से उम्मीद रखी।
जब दोस्त IIT की कोचिंग में थे, तब वो फ्रीलांस प्रोजेक्ट्स पर कोड लिख रहे थे।

खुद से हारना सबसे खतरनाक होता है

“दूसरों से हार के लूज़र कहलाने से ज्यादा बुरा होता है खुद से हार जाना…”
– ये बात सुशांत की फिल्म ‘छिछोरे’ से है, लेकिन रोहित की जिंदगी में सच बनकर उतरी।

उन्होंने खुद से कभी हार नहीं मानी। ना तब जब मार्क्स कम आए, ना तब जब शुरुआत में कोई साथ नहीं था। और ना तब जब सबने कहा – “इतने में क्या होगा?”

कहानी वहीं खत्म नहीं होती…

SATMAT Technologies के अलावा उन्होंने शुरू की:

उन्हें International Glory Award(Sonu Sood द्वारा), Rashtriya Abhiman Puraskar, और Bangkok में International Business Award मिल चुके हैं।

किस्सा छोटा है, लेकिन मतलब गहरा

रोहित की कहानी उन सभी युवाओं की आवाज़ है जिन्हें सिस्टम ने कभी कहा हो –
“तेरे से नहीं होगा।”

उनकी सफलता सिर्फ बिजनेस की नहीं, बल्कि उस सोच की जीत है जो कहती है —
“जिंदगी को सिर्फ नंबरों से मत मापो, इसे जियो, समझो और खुद से हारो मत।”

तो अगली बार अगर किसी का रिजल्ट उम्मीद से कम आए,
तो उसके सामने रोहित की कहानी रखना –
क्योंकि डिग्री नहीं, सोच और साहस असली पहचान बनाते हैं।

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