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Alok Pandey Gopal ने जब मंच पर गाया “केहू केतनो दुलारी बाकी माई ना होई”, तो मंत्री मंगल पाण्डेय भी नहीं रोक पाए आंसू!

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जलालपुर (सारण)। भोजपुरी संगीत की महफ़िल सजी थी, माहौल पूरी तरह संगीतमय हो चुका था। तभी मंच पर लोकगायक आलोक पाण्डेय आए और जैसे ही उन्होंने गाना शुरू किया – “केहू केतनो दुलारी बाकी माई ना होई”, पूरा पंडाल भावुक हो गया। और सबसे ज्यादा असर हुआ बिहार सरकार के स्वास्थ्य एवं विधि मंत्री मंगल पाण्डेय पर। गीत की गहराई और माँ के प्रति समर्पण के भावों ने ऐसा असर डाला कि मंत्री जी खुद को रोक नहीं पाए और उनकी आँखों से आँसू छलक पड़े।

भोजपुरी गीतों की जादूई शाम

मौका था पूर्वी के जनक पंडित महेन्द्र मिसिर की जयंती समारोह का, जो हर साल भव्य तरीके से मनाया जाता है। इस साल भी बिहार सरकार के कला एवं संस्कृति विभाग और जिला प्रशासन सारण के संयुक्त तत्वावधान में यह आयोजन हुआ, जहां भोजपुरी के जाने-माने गायक आलोक पाण्डेय गोपाल ने अपने सुरों से समां बांध दिया।

जैसे ही आलोक पाण्डेय ने मंच संभाला, उन्होंने महेन्द्र मिसिर के अमर गीतों की प्रस्तुति शुरू की। “जब से कन्हैया गईंलें”, “आहे आहे उधो”, “तू राजा बाबू हउवा” जैसे गाने सुनकर दर्शक झूम उठे। लेकिन जब “केहू केतनो दुलारी बाकी माई ना होई” की आवाज़ गूंजी, तो पूरा माहौल भावुक हो गया।

मंत्री मंगल पाण्डेय भी हुए भावुक

मंच के पास बैठे मंत्री मंगल पाण्डेय भी इस गीत से इतने प्रभावित हुए कि उनकी आँखों में आँसू आ गए। कार्यक्रम के बाद उन्होंने आलोक पाण्डेय की सराहना करते हुए कहा, “भोजपुरी लोकसंगीत सिर्फ मनोरंजन नहीं, बल्कि हमारी संस्कृति और भावनाओं का आईना है। यह गीत सुनकर मेरी माँ की याद आ गई। भोजपुरी संगीत की यह धरोहर पीढ़ियों तक जिंदा रहेगी।”

लोकसंगीत के प्रति समर्पित कलाकार

लोकगायक आलोक पाण्डेय, जो महुआ चैनल के सुरसंग्राम उपविजेता और दूरदर्शन किसान चैनल के फोक स्टार माटी के लाल विजेता रह चुके हैं, उन्होंने बताया कि उन्होंने संगीत की शुरुआती शिक्षा अपने पिता और गुरु पंडित रामेश्वर पाण्डेय से ली थी। आगे चलकर उन्होंने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से संगीत में विधिवत प्रशिक्षण लिया और अब भोजपुरी संगीत को नई ऊंचाइयों तक ले जाने के लिए लगातार प्रयासरत हैं।

उन्होंने अपने सांगीतिक मंच “अमर राग और थाती” के बारे में भी बताया, जिसका मकसद लोकसंगीत को संरक्षित करना और नई पीढ़ी तक पहुँचाना है।

हर साल मनाया जाता है भोजपुरी दिवस

महेंद्र मिसिर की जयंती हर साल 16-17 मार्च को भोजपुरी दिवस के रूप में मनाई जाती है। इस साल के आयोजन में पंडित महेन्द्र मिसिर समिति के मुख्य सदस्य पंडित मिश्र के पौत्र रामनाथ मिश्र, प्रपौत्र विनय मिश्रा, वंशीवट तिवारी समेत कई गणमान्य लोग शामिल हुए।

कार्यक्रम के अंत में आलोक पाण्डेय ने सभी आयोजकों, जिला प्रशासन और भोजपुरी संगीत प्रेमियों का धन्यवाद किया।

इस भावनात्मक शाम ने साबित कर दिया कि भोजपुरी संगीत सिर्फ धुनों का संगम नहीं, बल्कि दिलों की धड़कन भी है!

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